6 Solved Questions with Answers
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2024
प्रश्न 1.(a) प्रशासनिक तर्कसंगत निर्णय लेने के लिये इनपुट के एक विश्वसनीय स्रोत के रूप में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का अनुप्रयोग एक बहस का मुद्दा है। नैतिक दृष्टिकोण से इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(b) "नैतिकता में कई प्रमुख आयाम शामिल हैं जो व्यक्तियों और संगठनों को नैतिक रूप से ज़िम्मेदार व्यवहार की दिशा में मार्गदर्शन करने में महत्त्वपूर्ण हैं।" मानवीय कार्यों को प्रभावित करने वाले नैतिकता के प्रमुख आयामों की व्याख्या कीजिये। चर्चा कीजिये कि ये आयाम पेशेवर संदर्भ में नैतिक निर्णय लेने को कैसे आकार देते हैं।
(a):
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रशासनिक निर्णय लेने में AI की भूमिका का उल्लेख करते हुए परिचय लिखिये।
- प्रमुख नैतिक चिंताओं पर प्रकाश डालिये: जिसमें पूर्वाग्रह, जवाबदेही, पारदर्शिता, गोपनीयता शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त दक्षता, सटीकता और वस्तुनिष्ठता समेत AI के लाभों पर भी प्रकाश डालिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय: प्रशासनिक निर्णयन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के समावेशन ने विमर्श को उत्पन्न दिया है। AI दक्षता और निष्पक्षता को बढ़ा सकता है, यह गहन नैतिक प्रश्न उठाता है।
मुख्य भाग:
- डेटा-संचालित एल्गोरिदम पर AI की निर्भरता मानव अंतर्ज्ञान और नैतिक तर्क की भूमिका को कम कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे निर्णय लिये जाते हैं जिनमें प्रासंगिक समझ का अभाव होता है।
- जब AI के निर्णय से नुकसान होता है तो ज़िम्मेदारी का निर्धारण करना समस्याग्रस्त हो जाता है, जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि दोष डेवलपर्स का है, ऑपरेटरों का है या फिर स्वयं AI का है।
- AI प्रणालियाँ अनजाने में प्रशिक्षण डेटा में मौजूद पूर्वाग्रहों को सुदृढ़ कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप भेदभावपूर्ण परिणाम सामने आते हैं, जो हाशिये पर पड़े समुदायों को असंगत रूप से प्रभावित करते हैं।
- विभिन्न AI एल्गोरिदम "ब्लैक बॉक्स" के रूप में कार्य करते हैं, जिससे हितधारकों के लिये निर्णय लेने की प्रक्रिया को समझना मुश्किल हो जाता है, जिससे विश्वास और पारदर्शिता कम हो जाती है।
- AI प्रणालियों को प्रायः बड़ी मात्रा में डेटा की आवश्यकता होती है, जिससे डेटा गोपनीयता, सहमति और व्यक्तिगत जानकारी के संभावित दुरुपयोग से संबंधित चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
हालाँकि AI प्रशासनिक कार्यों में दक्षता और सटीकता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाता है, जो प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करता है तथा नागरिक संतुष्टि को बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त अगर AI का उचित रूप से प्रयोग किया जाए तो निष्पक्षता लाकर प्रशासन में सुधार किया जा सकता है।
निष्कर्ष: प्रशासन में ज़िम्मेदारीपूर्वक AI का उपयोग करने के लिये, नैतिक चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है, जिसके लिये यह सुनिश्चित करना होगा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में मानवीय मूल्यों, जवाबदेही और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी जाए।
(b):
हल करने का दृष्टिकोण:
- मानवीय कार्यों को प्रभावित करने वाली नैतिकता के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए परिचय लिखिये।
- नैतिकता के आयामों जैसे कर्त्तव्यशास्त्र, उद्देश्यशास्त्र और सद् नैतिकता का उल्लेख करते हुए मूल्यांकन कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय: नैतिकता सिद्धांतों की अवसंरचना है, जो व्यक्तियों और संगठनों में नैतिक व्यवहार का मार्गदर्शन करती है। नैतिकता के प्रमुख आयाम मानवीय कार्यों को प्रभावित करते हैं, मूल्यों और मानकों को आकार देते हैं जो निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को संबोधित करते हैं, विशेष रूप से पेशेवर अभिकरणों में जहाँ परिणाम महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
मुख्य भाग:
नैतिकता के प्रमुख आयाम और नैतिक निर्णय लेने में उनकी भूमिका इस प्रकार है:-
- मानक नैतिकता नैतिक मानदंड स्थापित करती है, जो व्यक्तियों और संगठनों को उचित तथा अनुचित कार्यों के मूल्यांकन में मार्गदर्शन प्रदान करती है।
- नैतिक दुविधाओं से निपटने के लिये रूपरेखा प्रदान करके, यह निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को महत्त्वपूर्ण रूप से आकार देता है।
- सद् नैतिकता नैतिक स्वरूप के महत्त्व तथा सत्यनिष्ठा और साहस जैसे सद्गुणों के विकास पर ज़ोर देती है।
- यह दृष्टिकोण पेशेवरों को अच्छी आदतें विकसित करने, नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने और एक सहयोगात्मक, भरोसेमंद संगठनात्मक संस्कृति निर्माण हेतु प्रोत्साहित करता है।
- कर्त्तव्य-नैतिकता इस बात पर ज़ोर देती है कि कुछ कार्य स्वाभाविक रूप से उचित या अनुचित होते हैं तथा कर्त्तव्यों और दायित्वों के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
- यह पेशेवरों को अधिकारों और नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिये मार्गदर्शन करता है तथा दबाव होने पर भी सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करता है।
- उद्देश्यमूलक/टेलीओलॉजिकल नैतिकता परिणामों के आधार पर कार्यों का मूल्यांकन करती है तथा पेशेवरों को उनके निर्णयों के व्यापक प्रभाव पर विचार करने के लिये प्रेरित करता है।
- यह दृष्टिकोण ऐसी प्रथाओं को बढ़ावा देता है, जो व्यावसायिक हितों और समाज दोनों को लाभ पहुँचाता है।
निष्कर्ष: गांधी के "सेवन सिन" प्रमुख नैतिक आयामों को उज़ागर करते हैं: बिना काम के धन आदर्श नैतिकता पर बल देता है, विवेक के बिना आनंद सद् नैतिकता को दर्शाता है, जबकि चरित्र के बगैर ज्ञान सत्यनिष्ठा को रेखांकित करता है। ये सिद्धांत व्यक्तियों और संगठनों को व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक संदर्भों में ज़िम्मेदारीपूर्ण व्यवहार करने को प्रोत्साहित करते हैं।
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2024
प्रश्न 2 (a) "शांति के बारे में केवल बात करना ही पर्याप्त नहीं है, इस पर विश्वास करना चाहिये; और इस पर केवल विश्वास करना ही पर्याप्त नहीं है, इस पर कार्य करना चाहिये।" वर्तमान संदर्भ में, विकसित देशों के प्रमुख हथियार उद्योग, दुनिया भर में अपने स्वार्थ के लिये कई युद्धों की निरंतरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। आज के अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में निरंतर चल रहे संघर्षों को रोकने के लिये शक्तिशाली राष्ट्रों के नैतिक विचार क्या हैं? (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(b) ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन विकास के नाम पर मानव के लालच का परिणाम हैं, जो इस ओर संकेत करता है कि मानव सहित सभी जीवों का विलुप्त होना पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति की ओर अग्रसर है। जीवन की रक्षा के लिये और समाज तथा पर्यावरण के बीच संतुलन लाने के लिये आप इसे कैसे समाप्त करेंगे? (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
हल करने का दृष्टिकोण:
- उद्धरण का अर्थ संक्षेप में बताते हुए परिचय लिखिये।
- शक्तिशाली राष्ट्रों के नैतिक विचारों को उदाहरण के साथ समझाइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
यह उद्धरण इस बात पर ज़ोर देता है कि शांति केवल शब्दों या विश्वास से प्राप्त नहीं होती; इसे वास्तविकता में लाने के लिये ठोस कार्यों और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।
- यह राष्ट्रों की नैतिक ज़िम्मेदारी को उजागर करता है जिससे कि वे शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार कार्य करें, न कि अपने स्वार्थ के लिये विश्व भर में चल रहे संघर्षों को बढ़ावा दें।
मुख्य भाग:
शक्तिशाली राष्ट्रों के नैतिक विचार:
- वैश्विक शांति की ज़िम्मेदारी: शक्तिशाली राष्ट्रों को लाभ की अपेक्षा शांति को प्राथमिकता देनी चाहिये, तथा संघर्षों को बढ़ावा देने वाले कार्यों से बचना चाहिये, जैसे युद्धग्रस्त क्षेत्रों में हथियारों की बिक्री।
- उदाहरण: भारत गाजा के लिये संयुक्त राष्ट्र युद्ध विराम का समर्थन करता है, यह टू स्टेटस सॉल्यूशन का समर्थन करता है तथा नागरिकों की मृत्यु की निंदा करता है।
- मानवाधिकारों को बढ़ावा देना: उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी विदेश नीतियाँ मानवाधिकारों को बनाए रखें तथा दमनकारी शासनों को समर्थन देने से बचें।
- उदाहरण: तुर्की और सीरिया में ऑपरेशन दोस्त भारत की तीव्र मानवीय सहायता का एक प्रमुख उदाहरण है।
- कूटनीतिक समाधान: उन्हें सैन्य हस्तक्षेप के बजाय कूटनीति के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान खोजना चाहिये।
- उदाहरण: वर्ष 2015 के ईरान परमाणु समझौते में अमेरिका और यूरोपीय संघ की भूमिका।
- निरस्त्रीकरण का समर्थन करना और प्रसार को कम करना: प्रमुख शक्तियों को सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार को रोकने और वैश्विक हिंसा को बढ़ने से रोकने के लिये शस्त्र व्यापार संधि (ATT) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधियों का पालन करना चाहिये।
- हथियार उद्योगों को विनियमित करना: राष्ट्रों को जवाबदेही और वैश्विक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये लाइसेंसिंग, हथियार उत्पादन की निगरानी तथा अनिवार्य बिक्री रिपोर्टिंग समेत सख्त हथियार विनियमन लागू करना चाहिये।
- देशों को हथियारों के प्रसार को रोकने और हथियार निर्माताओं के बीच ज़िम्मेदार प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करना चाहिये।
निष्कर्ष:
एक दूसरे से जुड़ी इस दुनिया में शक्तिशाली राष्ट्रों के शांतिपूर्ण भविष्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। जैसे-जैसे वैश्विक परिदृश्य विकसित होता है, शांति को बढ़ावा देने में इन राष्ट्रों की प्रभावशीलता अंततः भविष्य के संघर्षों को रोकने के लिये सामूहिक प्रयासों की सफलता को निर्धारित करेगी।
हल करने का दृष्टिकोण:
- चिंताओं और आगे बढ़ने के लिये आवश्यक कदमों को रेखांकित करते हुए एक संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- वैश्विक तापमान वृद्धि से निपटने और पर्यावरणीय संतुलन बढ़ाने संबंधी रणनीतियों की रूपरेखा बताइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
विकास के नाम पर मानव लालच से प्रेरित वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का संकट गंभीर पर्यावरणीय क्षरण का कारण बनता है तथा मानव जाति समेत विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डालता है।
- इसके लिये पृथ्वी के साथ मानवता के संबंध का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है।
मुख्य भाग:
ग्लोबल वार्मिंग से निपटना और पर्यावरण संतुलन बहाल करना:
- सौर ऊर्जा क्षमता को बढ़ावा देना: बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा पहल के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना और कार्बन उत्सर्जन को कम करना।
- उदाहरण: भारत का राष्ट्रीय सौर मिशन।
- संधारणीय कृषि: कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने के लिये कुशल जल उपयोग और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना।
- उदाहरण: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना।
- पर्यावरण नीतियाँ और वैश्विक सहयोग: कठोर उत्सर्जन लक्ष्यों को बढ़ावा देना और प्रभावी जलवायु कार्रवाई के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना।
- उदाहरण: देशों द्वारा अपने शुद्ध शून्य उत्सर्जन की घोषणा करना।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: अपशिष्ट को कम करने के लिये पुनर्चक्रण तथा सतत् उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देना।
- उदाहरण: स्वच्छ भारत मिशन।
- कार्बन मूल्य निर्धारण और हरित प्रौद्योगिकियों का कार्यान्वयन: उत्सर्जन को कम करने और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये कैप-एंड-ट्रेड प्रणालियों का उपयोग करना तथा कार्बन कैप्चर एवं स्टोरेज (CSS) जैसे नवाचारों में निवेश करना।
- व्यक्तिगत उत्तरदायित्व और जीवनशैली में परिवर्तन: व्यक्तियों को ऊर्जा का उपयोग कम करने, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिये सतत् प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- उदाहरण: इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की ओर रुख।
- जलवायु साक्षरता और जागरूकता: सूचित और सक्रिय पर्यावरणीय विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये जलवायु परिवर्तन पर शिक्षा तथा जागरूकता को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष:
"पृथ्वी प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराती है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के लालच की पूर्ति के लिये नहीं।"
- महात्मा गांधी
जीवन की रक्षा और समाज एवं पर्यावरण के बीच संतुलन बहाल करने का मार्ग सतत् विकास, ज़िम्मेदार ऊर्जा उपयोग, पारिस्थितिकी तंत्र बहाली तथा वैश्विक सहयोग की ओर व्यापक बदलाव में निहित है।
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2024
प्रश्न 3. महान विचारकों के तीन उद्धरण नीचे दिये गए हैं। वर्तमान संदर्भ में प्रत्येक उद्धरण आपको क्या संप्रेषित करता है?
- "दूसरों से जो भी अच्छा है, उसे सीखो, लेकिन उसे अपने अंदर लाओ और अपने तरीके से उसे आत्मसात करो, दूसरों जैसा मत बनो।"-स्वामी विवेकानंद (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
- "शक्ति के अभाव में विश्वास का कोई लाभ नहीं है। किसी भी महान कार्य को पूरा करने के लिये विश्वास और शक्ति दोनों ही आवश्यक हैं।" -सरदार पटेल (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
- "कानून के अनुसार, यदि मनुष्य दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करता है तो वह दोषी है। नीतिशास्त्र के अनुसार, यदि वह केवल ऐसा करने के बारे में सोचता है तो वह दोषी है।"-इमैनुएल कांट (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(a):
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: स्वामी विवेकानंद के उद्धरण को ध्यान/मेडिटेशन सीखने और उसका आत्म-पहचान में प्रयोग करने के बारे में बताइये।
- मुख्य भाग: प्रत्येक संदर्भ के लिये उदाहरण प्रदान करते हुए उद्धरण की प्रासंगिकता को बताइये।
- निष्कर्ष: संवृद्धि एवं विकास हेतु बाह्य ज्ञान को व्यक्तिगत प्रामाणिकता के साथ संतुलित करने के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
परिचय:
स्वामी विवेकानंद का कथन, "दूसरों से जो भी अच्छा है, उसे सीखो, लेकिन उसे अपने तरीके से आत्मसात करो", विविध स्रोतों से ज्ञान को अपनाने और उसकी नकल करने के बजाय अपनी विशिष्ट पहचान में एकीकृत करने पर बल देता है।
मुख्य भाग:
वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता:
- व्यक्तिगत विकास: व्यक्तिगत स्तर पर यह उद्धरण आत्म-पहचान को प्रोत्साहित करता है। दूसरों से सीखकर तथा अपने अनुभवों के माध्यम से उस निस्यंदित ज्ञान को अपनी आवश्यकताओं एवं स्थितियों के अनुसार उपयोग में ला सकते हैं।
- उदाहरण: महात्मा गांधी ने सत्याग्रह के अपने दर्शन को विकसित करने के लिये ईसा मसीह और लियो टॉल्स्टॉय की शिक्षाओं को अपनाया, जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिये महत्त्वपूर्ण था।
- सामाजिक स्तर: यह उद्धरण इस बात पर बल देता है कि संस्कृतियाँ दूसरों से लाभकारी तत्त्वों का चयन कर एवं उन्हें आत्मसात कर विकसित होती हैं, स्थानीय पहचान को संरक्षित करते हुए समाज को समृद्ध बनाती हैं तथा पारंपरिक रीति-रिवाज़ों के साथ बाह्य प्रभावों का सामंजस्य स्थापित करती हैं।
- उदाहरण: भारतीय संगीत उद्योग पारंपरिक क्षेत्रीय ध्वनियों के साथ पश्चिमी प्रभावों का सामंजस्य स्थापित करता है, जिससे एक विशिष्ट मिश्रण निर्मित होता है जो भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। मैकडॉनल्ड्स जैसे वैश्विक ब्रांड मैकआलू टिक्की बर्गर जैसी वस्तुओं के साथ स्थानीय स्वाद के अनुकूल होते हैं और योग के अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों के इस सामंजस्यपूर्ण मिश्रण को और अधिक स्पष्ट करता है।
- राष्ट्रीय स्तर: यह उद्धरण इस बात पर ज़ोर देता है कि देशों को वैश्विक नवाचारों से सीखना चाहिये और उन्हें अपने विशिष्ट संदर्भों के अनुरूप ढालने की आवश्यकता है।
- उदाहरण: डिजिटल इंडिया पहल ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट पहुँच में सुधार हेतु वैश्विक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप वैश्वीकरण का उदाहरण है।
निष्कर्ष:
स्वामी विवेकानंद का यह कथन दूसरों से सीखने और अपनी विरासत को अपनाने के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन का समर्थन करता है, जिससे अधिक समृद्ध तथा प्रामाणिक जीवन की प्राप्ति होती है।
(b):
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: विश्वास और शक्ति के बीच अंतर्संबंध के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
- मुख्य भाग: विभिन्न संदर्भों में विश्वास और शक्ति की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।
- निष्कर्ष: सार्थक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये विश्वास और शक्ति के बीच समन्वय पर ज़ोर देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
सरदार पटेल का कथन लक्ष्य प्राप्ति में विश्वास और शक्ति के बीच के अंतर्संबंध को उजागर करता है: विश्वास दृष्टि प्रदान करता है, जबकि शक्ति उसे प्राप्त करने के लिये लचीलापन प्रदान करती है। शक्ति के बगैर विश्वास केवल आकांक्षा है; विश्वास के बगैर शक्ति में उद्देश्य नहीं होता।
मुख्य भाग:
वर्तमान संदर्भ में विश्वास और शक्ति के परस्पर संबंध की प्रासंगिकता:
- एक लोक सेवक के लिये आस्था एक बेहतर समाज के लिये एक दृष्टिकोण प्रदान करती है, जबकि शक्ति भ्रष्टाचार के बगैर सुधारों को लागू करने के लिये समर्पण सुनिश्चित करती है। हालाँकि प्रभावी प्रगति के लिये दोनों आवश्यक हैं।
- उदाहरण के लिये, सरदार पटेल का एकीकृत भारत का सपना कूटनीतिक सामर्थ्य के माध्यम से उभरा, जबकि नेल्सन मंडेला की आस्था और कार्यकर्त्ताओं के सामर्थ्य ने रंगभेद को समाप्त कर दिया, जिससे स्वतंत्र दक्षिण अफ्रीका का निर्माण हुआ।
- ब्लैक लाइव्स मैटर जैसे सामाजिक आंदोलन और पर्यावरण सक्रियता यह प्रदर्शित करते हैं कि परिवर्तन लाने के लिये न्याय (आस्था) में दृढ़ विश्वास के साथ संगठनात्मक प्राधिकारों के साथ सुमेलित होना चाहिये।
- सफल उद्यमी इस परस्पर क्रिया को मूर्त रूप देते हैं, क्योंकि प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों में आने वाली बाधाओं को खत्म करने के लिये उनके दृष्टिकोण (विश्वास) को अनुकूलनशीलता एवं रणनीतिक क्रियान्वयन (शक्ति) के साथ सुमेलित होना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, इलेक्ट्रिक वाहनों और पुन: प्रयोज्य रॉकेटों में एलन मस्क का विश्वास इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे विश्वास तथा सामर्थ्य उन्हें चुनौतियों को कम करने एवं अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक है।
- साझा विश्वास और प्रभावी सुधारों के माध्यम से राष्ट्र आगे बढ़ते हैं। वसुधैव कुटुंबकम दर्शन वैश्विक सद्भाव को बढ़ावा देता है, जैसा कि भारत की वैक्सीन मैत्री पहल और स्वच्छ भारत अभियान तथा SDG जैसे कार्यक्रमों में देखा गया है।
निष्कर्ष:
दोनों गुणों को विकसित करके हम चुनौतियों पर विजय पा सकते हैं और अपने लक्ष्यों तक पहुँच सकते हैं तथा महानता प्राप्त करने के लिये हमें विश्वास एवं शक्ति को सफलता के आवश्यक आधार के रूप में पहचानना होगा।
(c):
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: कानूनी और नीतिशास्त्रीय दोष के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये।
- मुख्य भाग: उदाहरणों के साथ वर्तमान संदर्भ में नैतिक विचार में विवेक की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिये।
- निष्कर्ष: वैयक्तिक ज़िम्मेदारी एवं नैतिक उद्देश्यों के महत्त्व पर बल दीजिये।
परिचय:
इमैनुएल कांट का यह उद्धरण कानूनी और नीतिशास्त्रीय दोष के बीच के अंतर को स्पष्ट करता है। कानून उन कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है जो दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, यद्यपि नीतिशास्त्र उद्देश्यों और विचारों पर विचार करता है। एक कार्य कानूनी हो सकता है लेकिन फिर भी नैतिक रूप से गलत हो सकता है यदि उसमें दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य शामिल है।
मुख्य भाग:
वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता:
- विवेक की भूमिका: विवेक सही और गलत का आंतरिक बोध है जो नैतिक निर्णयों का मार्गदर्शन करता है। यह नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिये आवश्यक है, क्योंकि यह व्यक्तियों को व्यक्तिगत लाभ से अधिक दूसरों के कल्याण को प्राथमिकता देने के लिये प्रेरित करता है, भले ही कानूनी दायित्व अन्यथा अनुमति देते हों। एक विवेकशील व्यक्ति जवाबदेही को बढ़ावा देता है एवं यह सुनिश्चित करता है कि कार्य नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप हों।
- उदाहरण के लिये, एक मुखबिर अपनी अंतरात्मा के कारण नौकरी की सुरक्षा की अपेक्षा लोक कल्याण को प्राथमिकता देते हुए अनैतिक कार्यों को सूचित करता है।
- कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व: कॉर्पोरेट कानूनी खामियों का फायदा उठाकर करों से बच सकते हैं, लेकिन नैतिक रूप से, यह गलत माना जा सकता है क्योंकि इनका इरादा समाज में उचित योगदान से बचना है।
- डिजिटल युग: घृणास्पद भाषण और ऑनलाइन ट्रोलिंग करने वाले अक्सर कानूनी सजा से बच जाते हैं, लेकिन इनके गंभीर नैतिक परिणाम होते हैं, जिससे उनके प्रभाव पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
- कार्यस्थल पर नैतिकता: एक नियोक्ता कानूनी रूप से सभी श्रम कानूनों का पालन कर सकता है, लेकिन नैतिक रूप से, यदि वह श्रमिकों का शोषण करता है या अनुचित कार्य वातावरण बनाता है तो वह दोषी हो सकता है।
हालाँकि कांट के दृष्टिकोण को विकासशील नैतिकता द्वारा चुनौती दी जा रही है; उदाहरण के लिये, भारत में व्यभिचार को अब अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, लेकिन इसे अब भी व्यापक रूप से अनैतिक माना जाता है।
इस प्रकार, कांट की अंतर्दृष्टि हमें नैतिक ज़िम्मेदारी की भावना विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करती है जो कानूनी दायित्वों से परे है तथा व्यक्तियों से उनके विचारों के निहितार्थों पर विचार करने का आग्रह करती है।
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2024
प्रश्न 4. (a) "न्यायपूर्ण और अन्यायपूर्ण की अवधारणा प्रासंगिक है। एक साल पहले जो न्यायपूर्ण था, आज के संदर्भ में वह अन्यायपूर्ण हो सकता है। न्याय-हत्या को रोकने के लिये बदलते संदर्भ पर लगातार नज़र रखी जानी चाहिये।" उपर्युक्त कथन का समुचित उदाहरणों सहित परीक्षण कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(b) "मामले के सार को नज़रअंदाज़ करके रूप के प्रति अविवेकी आसक्ति का परिणाम अन्याय होता है।
एक समझदार सिविल सेवक वह है जो ऐसी शाब्दिकता को नज़रअंदाज़ करता है और सच्चे इरादे से काम करता है।" उपर्युक्त कथन का समुचित उदाहरणों सहित परीक्षण कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(a):
हल करने का दृष्टिकोण:
- न्यायपूर्ण और अन्यायपूर्ण की अवधारणा प्रसंग पर निर्भर है यह बताते हुए परिचय लिखिये।
- सती प्रथा उन्मूलन, महिलाओं की भूमिका, जातिगत भेदभाव और विधिक सुधार जैसे उदाहरणों का उपयोग कीजिये।
- सतत् संवीक्षा से न्याय में प्रगति सुनिश्चित होती है।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय: न्यायपूर्ण और अन्यायपूर्ण की अवधारणाएँ सामाजिक मूल्यों, सांस्कृतिक मानदंडों, आधुनिकीकरण, आर्थिक परिवर्तनों से आकार लेती हैं एवं राजनीतिक परिवर्तन इन अवधारणाओं को पुनः परिभाषित कर सकते हैं। एक युग में जो न्यायपूर्ण माना जाता था, वह परिवर्तित प्रासंगिकता के अनुरूप बदल सकता है, जिससे समाज में निष्पक्ष और न्यायसंगत परिणाम सुनिश्चित करने के लिये सतत् संवीक्षा की आवश्यकता होती है।
मुख्य भाग:
अन्याय के निषेधन हेतु न्यायपूर्ण और अन्यायपूर्ण की अवधारणाओं की सतत् संवीक्षा की आवश्यकता है-
- 19वीं सदी में सती प्रथा के उन्मूलन ने एक बदलाव को चिह्नित किया, जिसमें अनुचित प्रथाओं को अन्यायपूर्ण माना गया।
- ऐतिहासिक रूप से न्यायोचित मानी जाने वाली गृहिणी के रूप में महिलाओं की भूमिका को अब लैंगिक समानता एवं कॅरियर के अवसरों की वकालत करने वाले समकालीन विचारों द्वारा चुनौती दी जा रही है।
- एक बार स्वीकार कर लिये जाने के बाद, जाति-आधारित भेदभाव को अन्यायपूर्ण माना जाने लगा है और इस अन्याय के प्रभाव को कम करने के लिये विभिन्न प्रावधान किये गए हैं।
- वर्ष 2018 में समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने से बदलते सामाजिक मूल्यों का पता चलता है जोकि पूर्व में हाशिये पर रहे LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों की पुष्टि करता है।
- वर्ष 2019 में तीन तलाक पर प्रतिबंध मुस्लिम महिलाओं के लिये न्याय की दिशा में एक कदम था, जो पुरानी और अन्यायपूर्ण प्रथाओं को चुनौती देता है।
बदलते संदर्भों की सतत् संवीक्षा यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि न्याय की हमारी समझ सामाजिक मूल्यों के साथ विकसित हो। यह संवीक्षा पुरातन प्रथाओं की अनुचितता को जारी रखने से रोकने में मदद करती है और सभी व्यक्तियों के लिये समान व्यवहार को बढ़ावा देती है, जिससे एक निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण समाज का सृजन होता है।
निष्कर्ष: न्याय की बदलती प्रकृति के लिये सामाजिक संदर्भों की सतत् संवीक्षा आवश्यक है। उदाहरण के लिये, मृत्युदंड, जिसे प्राचीन काल में न्यायसंगत माना जाता था, आज अन्यायपूर्ण माना जाता है। इसी तरह, लड़कियों के लिये 18 और लड़कों के लिये 21 वर्ष की अलग-अलग विवाह आयु वर्तमान मानदंडों को दर्शाती है।
(b):
हल करने का दृष्टिकोण:
- रूप और सार के बीच अंतर पर प्रकाश डालते हुए उत्तर का परिचय लिखिये।
- संक्षिप्त उदाहरण के साथ रूप के प्रति अविवेकी आसक्ति के नकारात्मक परिणामों की व्याख्या कीजिये।
- किसी प्रासंगिक मामले का उदाहरण देते हुए निर्णय लेने में सार के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
- एक समझदार सिविल सेवक के गुणों का वर्णन कीजिये (विवेक, सहानुभूति, नैतिक साहस)।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:प्रशासनिक प्रक्रियाओं में रूप और सार के मध्य विभव अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करने से अन्याय हो सकता है, इसलिये एक समझदार सिविल सेवक, रूप से अधिक सार को प्राथमिकता देता है, जिससे निष्पक्ष परिणाम सुनिश्चित होते हैं जो विधि के वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।
मुख्य भाग:
- नियमों पर अत्यधिक बल: नौकरशाही प्रक्रियाओं के सख्त पालन से नागरिकों की वास्तविक ज़रूरतों की अनदेखी हो सकती है, जैसा कि उन मामलों में देखा गया है जहाँ आवेदनों को मूल मुद्दों के बजाय मामूली तकनीकी कारणों से खारिज कर दिया जाता है।
- न्यायिक विवेक: जो न्यायाधीश केवल विधिक औपचारिकताओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वे अन्यायपूर्ण फैसले दे सकते हैं, जबकि जो न्यायाधीश व्यापक संदर्भ पर विचार करते हैं, उनके निर्णयों से न्यायसंगत परिणाम प्राप्त हो सकते हैं, जैसे शमनकारी परिस्थितियों के आधार पर सज़ा को कम किया जा सकता है।
- सामाज के लिये कल्याणकारी कार्यक्रम: कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन अक्सर तब प्रभावित होता है जब अधिकारी सामुदायिक आवश्यकताओं की अपेक्षा कागज़ी कार्रवाई को प्राथमिकता देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आवश्यक सेवाओं की प्रदायिता विलंबित होती है या उन्हें देने से मना कर दिया जाता है।
- विवेकाधीन शक्तियाँ: विवेक का उपयोग करते हुए सिविल सेवक विशिष्ट परिस्थितियों के अनुरूप नीतियों को अनुकूलित कर सकते हैं, जिससे न्याय को बढ़ावा मिलता है, जैसा कि घरेलू हिंसा के मामलों में हस्तक्षेप से स्पष्ट होता है, जहाँ मानक प्रक्रियाएँ पीड़ितों की रक्षा करने में विफल हो सकती हैं।
सिविल सेवकों के लिये एक कठोर आचार संहिता आवश्यक है, जो अपेक्षित व्यवहार को परिभाषित करती है। इसके विपरीत, आचार संहिता नैतिक सिद्धांत प्रदान करती है जो विधि के मूल उद्देश्य के साथ कार्यों को संरेखित करके न्यायपूर्ण परिणाम सुनिश्चित करती है।
निष्कर्ष: सिविल सेवकों में नोलन सिद्धांतों को स्थापित करके, हम उनका ध्यान विधि के शब्दों से हटाकर उसकी भावना पर केंद्रित कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण सहानुभूति एवं करुणा को बढ़ावा देता है, यह सुनिश्चित करता है कि न्याय विनियमों के मूल उद्देश्य के अनुरूप हो।
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2024
प्रश्न 5 (a) 'आचार संहिता' और 'नैतिक संहिता' लोक प्रशासन में मार्गदर्शन के स्रोत हैं। आचार संहिता पहले से ही क्रियान्वित है जबकि नैतिक संहिता अभी तक लागू होना बाकी है। शासन में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखने के लिये एक उपयुक्त आदर्श नैतिक संहिता का सुझाव दीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(b) नए कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की आत्मा भारतीय संस्कृति और लोकाचार पर आधारित न्याय, समानता और निष्पक्षता है। वर्तमान न्यायिक प्रणाली में दंड के सिद्धांत से न्याय की ओर बड़े बदलाव के आलोक में इस पर चर्चा कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(a):
हल करने का दृष्टिकोण:
- आचार संहिता और नैतिक संहिता का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- किस प्रकार दोनों लोक प्रशासन में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं तथा शासन में नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिये आदर्श आचार संहिता का प्रस्ताव करते हैं, रेखांकित कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
'आचार संहिता' लोक अधिकारियों के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करती है, जिसमें कर्त्तव्य, स्वीकार्य व्यवहार और हितों के टकराव को शामिल किया जाता है। इसके विपरीत, 'नैतिक संहिता' सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे व्यापक सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करती है, जो नैतिक निर्णय लेने को आकार देती है। दोनों मिलकर लोक सेवा में विश्वास और सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देते हैं।
मुख्य भाग:
- भारत में सिविल सेवकों के लिये आचार संहिता केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली, 1964 के माध्यम से स्थापित की गई थी, जो निर्देशात्मक एवं प्रवर्तनीय है तथा सिविल सेवाओं में आचार संहिता का होना आवश्यक है।
आचार संहिता के प्रस्तावित मॉडल में निम्नलिखित शामिल होना चाहिये:
- सत्यनिष्ठा: सत्यनिष्ठा और नैतिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता यह सुनिश्चित करती है कि सिविल सेवक को नैतिक रूप से कार्य करना चाहिये।
- (सत्येंद्र दुबे (IES अधिकारी)- ऐसे सिविल सेवकों में से पहले हैं- जिन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग निर्माण परियोजना में भ्रष्टाचार को उजागर किया)
- जवाबदेही: जवाबदेही को शामिल करने से लोक सेवकों को कर्त्तव्य की भावना के साथ कार्य करने के लिये प्रोत्साहन मिलता है, जिससे बेहतर प्रशासन और जनता का विश्वास बढ़ता है।
- पारदर्शिता: पारदर्शिता को शामिल करने से यह सुनिश्चित होता है कि सिविल सेवक स्पष्टता और सुगमता से कार्य करें, जिससे जनता का विश्वास में वृद्धि हो।
- उदाहरण: नीति-निर्माण में समुदाय की प्रतिक्रिया को शामिल करना।
- ईमानदारी: यह सिद्धांत इस अपेक्षा को पुष्ट करता है कि सिविल सेवक ईमानदारी और नैतिकता के साथ आचरण करेंगे।
- तटस्थता: यह सुनिश्चित करती है कि सार्वजनिक अधिकारी वस्तुनिष्ठ हों और राजनीतिक संबद्धता के बजाय अपनी ज़िम्मेदारियों पर ध्यान केंद्रित करें।
- उदाहरण: सेवा के दौरान राजनीतिक प्रचार से बचें।
निष्कर्ष:
पीसी होता समिति (2004) ने आचार संहिता के पूरक के रूप में एक आचार संहिता लागू करने का सुझाव दिया था, जिसमें सिविल सेवाओं में इन आदर्शों को बढ़ावा देने के लिये सत्यनिष्ठा, योग्यता और उत्कृष्टता जैसे मूल मूल्यों को शामिल किया गया हो।
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 के मूल संदर्भ को समझाइये।
- बीएनएस में न्याय, समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को रेखांकित कीजिये तथा दंडात्मक दृष्टिकोण से अधिक न्यायोन्मुख न्यायिक प्रणाली की ओर बदलाव पर प्रकाश डालिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 का उद्देश्य भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को प्रतिस्थापित करना है, जो भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों में निहित यह दंडात्मक उपायों पर निष्पक्षता, पुनर्वास और पुनर्स्थापनात्मक न्याय को प्राथमिकता देते हुए न्याय, समानता तथा निष्पक्षता पर ध्यान केंद्रित करता है।
मुख्य भाग:
बीएनएस में न्याय, समानता और निष्पक्षता
- बीएनएस कुछ अपराधों के लिये मध्यस्थता और सुलह को प्रोत्साहित करता है, जो संवाद के माध्यम से विवादों को सुलझाने की भारतीय परंपरा के अनुरूप है।
- उदाहरण के लिये, छोटी-मोटी चोरी के मामलों में, संबंधित पक्षकार चोरी की गई वस्तु को वापस करने तथा पीड़ित को मुआवज़ा देने पर सहमत हो सकते हैं।
- बीएनएस भारतीय संविधान में निहित समानता के सिद्धांत को कायम रखते हुए जाति, पंथ या लैंगिक परवाह किये बगैर सभी नागरिकों के लिये विधि की समानता सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिये, इसमें भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करने और कानूनी कार्यवाहियों में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपाय शामिल हैं।
- बीएनएस ने उच्चतम न्यायालय के फैसलों (जोसेफ शाइन और नवतेज सिंह जौहर मामले) के अनुरूप व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है तथा आधुनिक, अधिकार-आधारित न्याय की ओर कदम बढ़ाया है।
दंड से न्यायोन्मुख न्यायिक प्रणाली की ओर बदलाव:
- बीएनएस, मानहानि जैसे छोटे अपराधों के लिये सुधारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है तथा सामाजिक पुनः एकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये कारावास की बजाय पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करता है।
- बीएनएस न्यायिक विलंब को कम करने और समय पर न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तीव्र कानूनी प्रक्रियाओं को अनिवार्य बनाता है।
- वैवाहिक बलात्कार के लिये अपवाद को बरकरार रखते हुए, बीएनएस ने यौन अपराधों के प्रति अपने दृष्टिकोण को आधुनिक बनाया है तथा विवाह के भीतर सहमति और व्यक्तिगत अधिकारों को स्वीकार किया है।
निष्कर्ष:
बीएनएस दंडात्मक से न्यायोन्मुख शासन की ओर प्रगतिशील बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है, जो निष्पक्षता और अखंडता सुनिश्चित करता है।
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2024
प्रश्न 6 (a) "भारतीय संस्कृति और मूल्य प्रणाली में लैंगिक अस्मिता के बावजूद समान अवसर प्रदान किये गए हैं। पिछले कुछ वर्षों से सार्वजनिक सेवाओं में महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है।" महिला लोक सेवकों के सामने आने वाली लैंगिक-विशिष्ट चुनौतियों का परीक्षण कीजिये और अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में उनकी दक्षता बढ़ाने और ईमानदारी के उच्च मानक को बनाए रखने के लिये उपयुक्त उपाय सुझाइये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(b) मिशन कर्मयोगी का लक्ष्य नागरिकों की सेवा करने की कुशलता सुनिश्चित करना और बदले में खुद का विकास करने के लिये आचरण तथा व्यवहार का एक बहुत ही उच्च मानक बनाए रखना है। यह योजना कैसे सिविल सेवकों को उत्पादक दक्षता बढ़ाने और ज़मीनी स्तर पर सेवाएँ प्रदान करने में सशक्त बनाएगी? (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)
(a):
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: भारतीय संस्कृति के संदर्भ में लोक सेवा में महिलाओं के बढ़ते प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डालिये, जो समान अवसर पर बल देती है।
- मुख्य भाग: लैंगिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और दक्षता बढ़ाने के लिये पहल को सुझाइये।
- निष्कर्ष: ईमानदारी के उच्च मानकों को सुनिश्चित करने के लिये इन चुनौतियों का समाधान करने के महत्त्व पर बल देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारतीय संस्कृति, जिसमें स्त्री देवताओं के प्रति श्रद्धा और ब्रह्म समाज जैसे सुधार आंदोलन शामिल हैं, ने लंबे समय से लैंगिक समानता का समर्थन किया है। भारत का संविधान भी समान अवसरों को सुनिश्चित करता है, जिसके परिणामस्वरूप लोक सेवा में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। हालाँकि उन्हें अभी भी अपनी पेशेवर भूमिकाओं में विशिष्ट लैंगिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
मुख्य भाग:
लोक सेवा में महिलाओं के लिये चुनौतियाँ:
- व्यक्तिगत कारक: परिवार की देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ प्रायः कॅरियर की उन्नति से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं।
- संरचनात्मक कारक: पुरुष-प्रधान संस्कृति और पक्षपातपूर्ण चयन प्रक्रिया जैसी बाधाएँ पदोन्नति के लिये पुरुष उम्मीदवारों के पक्ष में होती हैं।
- सामाजिक-सांस्कृतिक कारक: सार्वजनिक पितृसत्ता और महिलाओं को कम सक्षम नेता तथा शारीरिक रूप से कमज़ोर मानने की रुढ़िबद्ध धारणा, उनके विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
- संस्थागत कारक: लैंगिक भेदभाव महिलाओं के कॅरियर की प्रगति को बाधित करता है तथा उन्हें निम्न-स्तरीय भूमिकाओं और पारंपरिक रूप से महिलाओं वाले क्षेत्रों तक सीमित कर देता है।
कार्यकुशलता और ईमानदारी बढ़ाने के उपाय:
- मिशन कर्मयोगी जैसे लैंगिक-संवेदनशील प्रशिक्षण कार्यक्रम और पहल विकसित करना, जो महिलाओं को नेतृत्व कौशल तथा नैतिक निर्णय लेने में सक्षम बनाए तथा उनकी कार्यकुशलता एवं निष्ठा में वृद्धि करना।
- लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय अकादमी के लैंगिक-संवेदनशील प्रशिक्षण को अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों द्वारा अपनाया जा सकता है।
- नेतृत्वकारी भूमिकाओं में महिलाओं के लिये कोटा निर्धारित करना तथा निर्णय लेने में दृश्यता और जवाबदेही बढ़ाने के लिये वरिष्ठों के माध्यम से मार्गदर्शन कार्यक्रम स्थापित करना।
- महिलाओं को व्यावसायिक ज़िम्मेदारियों का प्रबंधन करने, कार्यकुशलता और नौकरी की संतुष्टि में सुधार करने में सहायता के लिये सब्सिडीयुक्त बाल देखभाल तथा कॅरियर ब्रेक के लिये सहायता प्रदान करना।
निष्कर्ष:
लोक सेवा में लैंगिक चुनौतियों से निपटने के लिये सुधार और सहायक नीतियों की आवश्यकता है, जबकि प्रशिक्षण के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने से शासन की दक्षता तथा ईमानदारी में सुधार होता है।
(b):
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: मिशन कर्मयोगी की अवधारणा तथा इसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिये।
- मुख्य भाग: यह किस प्रकार सिविल सेवकों को सशक्त बनाता है और ज़मीनी स्तर पर सेवा प्रदायगी को बढ़ावा देता है।
- निष्कर्ष: प्रभावी शासन पर योजना के व्यापक प्रभाव को बताइये।
परिचय:
वर्ष 2020 में आरंभ हुआ मिशन कर्मयोगी, सिविल सेवा क्षमता निर्माण के लिये एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जो रचनात्मकता, नवाचार और योग्यता विकास पर बल देते हुए ऑन-साइट तथा ऑनलाइन शिक्षण के मिश्रण के माध्यम से सिविल सेवकों के कौशल को बढ़ाता है।
मुख्य भाग:
सिविल सेवकों को सशक्त बनाना:
- मिशन का iGOT-कर्मयोगी प्लेटफॉर्म सिविल सेवकों को अनुकूलित प्रशिक्षण संसाधनों तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे मांग के अनुसार सीखने की सुविधा मिलती है, जिससे अनुकूलनशीलता और उत्पादकता में वृद्धि होती है।
- यह कार्यक्रम भूमिका-आधारित मानव संसाधन प्रबंधन में परिवर्तित हो जाता है, जिससे अधिकारियों की योग्यताओं को उनके पद की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य आवंटन की अनुमति मिलती है।
- सिविल सेवकों को उनकी भूमिकाओं के लिये आवश्यक विशिष्ट कौशल और ज्ञान के आधार पर प्रशिक्षित किया जाता है, जो एक ही नियम सभी पर लागू होने वाले दृष्टिकोण से भिन्न है।
- यह कार्यक्रम एक उन्नत ढाँचे के माध्यम से महत्त्वपूर्ण कौशल और नैतिक मानकों को विकसित करने पर केंद्रित है, जो प्रशिक्षण को कॅरियर संबंधी लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि सिविल सेवक प्रभावी तथा जवाबदेह दोनों हों।
ज़मीनी स्तर पर सेवा प्रदायगी को बढ़ावा देना:
- मिशन कर्मयोगी सिविल सेवकों को हाशिये पर पड़े समुदायों और महिलाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने तथा समावेशी शासन को बढ़ावा देने के लिये सक्षम बनाता है।
- यह विभागों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है, सेवा प्रदायगी को सुव्यवस्थित करता है, और बेहतर निगरानी के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है। यह ज़मीनी स्तर पर एकजुट प्रयासों को सुनिश्चित करता है, जो समतामूलक सामाजिक-आर्थिक विकास के राष्ट्रीय लक्ष्य के साथ संरेखित है।
निष्कर्ष:
मिशन कर्मयोगी नवाचार और समावेशिता को बढ़ावा देता है तथा ज़मीनी स्तर पर प्रभावी शासन के लिये सेवा प्रदायगी को सुव्यवस्थित करता है।